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Thursday, December 31, 2020
Oont Ke Gosht Se Wuzu Karna (ऊंट के गोश्त से वुज़ू करना)
Wednesday, December 30, 2020
Mazi Ka Dhona Aur Iski Wajah Se Wuzu Karna (मज़ी का धोना और इसकी वजह से वुज़ू करना)
Tuesday, December 29, 2020
Namaz Ke Liye Wuzu Ka Wajib Hona ( नमाज़ के लिए वुज़ू का वाजिब होना)
🍂🍃ﺑِﺴْـــــــــــــﻢِﷲِالرَّحْمٰنِﺍلرَّﺣِﻴﻢ🍂🍃
🍁 *حدیث:-* وَعَنِ ابْنِ عُمَرَ قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: «لَا تُقْبَلُ صَلَاةُ بِغَيْرِ طُهُورٍ وَلَا صَدَقَةٌ مِنْ غُلُولٍ» . رَوَاهُ مُسلم
🍁 *तर्जुमा :-* इब्ने उमर रज़ियल्लाहू अन्हुमा बयान करते हैं, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: “वुज़ू के बिना नमाज़ क़ुबूल नहीं की जाती है और ना हराम माल से सदक़ा”।
📚 *[मुस्लिम (535), मिशकातुल मसाबीह (301)]*
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Monday, December 28, 2020
Wuzu Ke Naqis Hone Ka Asar Namaz Par Padta Hai ( वुज़ू के नाक़िस होने का असर नमाज़ पर पड़ता है)
Sunday, December 27, 2020
Wuzu Ki Hifazat Karna (वुज़ू की हिफ़ाज़त करना)
Saturday, December 26, 2020
Zewar Wahan Tak Pahunchega Jahan Tak Wuzu Ka Pani Pahunchega (ज़ेवर वहाँ तक पहुंचेगा जहां तक वुज़ू का पानी पहुंचेगा)
Friday, December 25, 2020
Wuzu Ki Fazeelat ( वुज़ू की फ़ज़ीलत)
Surah Fatiha Part 8 (सुरह फ़ातिहा भाग 8)
*أَعـــــــــــــــــــــــوذ بالله من الشيطان الرجيم*●
🍂🍃ﺑِﺴْـــــــــــــﻢِﷲِالرَّحْمٰنِﺍلرَّﺣِﻴﻢ🍂🍃
🍃🎋🍃🎋...♡...🎋🍃🎋🍃🎋
*तफ़सीर दावतुल क़ुरआन*
लेख़क: अबू नोमान सैफ़ुल्लाह ख़ालिद
तर्जुमा: मोहम्मद शिराज़ (कैफ़ी)
*सूरह फ़ातिहा*
*भाग 8*
किसी बीमारी से शिफ़ा पाने के लिए जो दुआ पढ़ कर मरीज़ को दम किया जाता
है, वो भी “बिस्मिल्लाह” से शुरू होती है, जैसा कि सय्यदना अबू
सईद ख़ुदरी (र) बयान करते हैं, जिब्रील अलैहिस्सलाम रसूलुल्लाह (स) के पास आये और
पूछा: “ऐ
मुहम्मद! क्या आप बीमार हैं”? रसूलुल्लाह (स) ने फ़रमाया:
“हाँ!”
तो
जिब्रील अलैहिस्सलाम ने यह दुआ पढ़ी:
}}بِاسْمِ اللهِ أَرْقِيكَ، مِنْ كُلِّ شَيْءٍ يُؤْذِيكَ، مِنْ شَرِّ كُلِّ نَفْسٍ، أَوْ عَيْنِ حَاسِدٍ، اللَّهُ يَشْفِيكَ بِاسْمِ اللهِ أَرْقِيكَ{{
“अल्लाह के नाम के साथ, मैं तुम्हारे लिए हर उस चीज़ से जो
तुम्हें तकलीफ़ पहुँचाती है और हर नफ़्स की बुराई से या हासिद की नज़रे बद की बुराई
से शिफ़ा तलब करता हूँ, अल्लाह तुम्हें शिफ़ा अता करे, मैं अल्लाह के नाम के साथ
तुम्हारे लिए शिफ़ा तलब करता हूँ”। *[मुस्लिम: 5700]*
जिस जगह दर्द हो वहाँ हाथ रख कर तीन बार “बिस्मिल्लाह”
पढ़ना,
जैसा कि सय्यदना उस्मान बिन अबुल आस (र) ने रसूलुल्लाह (स) से अपने जिस्म में किसी
जगह दर्द होने की शिकायत की, जो इस्लाम क़ुबूल करने के बाद पहली बार हुआ था, तो
रसूलुल्लाह (स) ने फ़रमाया: “अपना हाथ दर्द की जगह रखो, फिर तीन बार “बिस्मिल्लाह”
और
सात बार यह दुआ पढ़ो:
}}أَعُوذُ بِاللَّهِ وَقُدْرَتِهِ مِنْ شَرِّ مَا أَجِدُ وَأُحَاذِر{{
“मैं अल्लाह की और उसकी क़ुदरत की पनाह तलब करता हूँ इस बीमारी
की बुराई से जो इस वक़्त मुझे हुई है और इससे भी जिसके आगे होने का ख़तरा है”। *[मुस्लिम: 5737]*
बीमार की शिफ़ा पाने के लिए शहादत की उंगली ज़मीन पर रखिये, फिर उसे
उठा कर यह दुआ पढ़िए, जैसा कि सय्यदा आयशा रज़ियल्लाहू अन्हा बयान करती हैं कि बेशक
रसूलुल्लाह (स) (मरीज़ की शिफ़ा के लिए) यह दुआ पढ़ते थे: *{{ بِاسْمِ اللَّهِ تُرْبَةُ أَرْضِنَا
بِرِيقَةِ بَعْضِنَا لِيُشْفَى بِهِ سَقِيمُنَا بِإِذْنِ رَبِّنَا}}* “अल्लाह के नाम के साथ, हमारी ज़मीन की मिट्टी और हममें से कुछ
के लुआबे दहन से हमारे रब के हुक्म से हमारा मरीज़ शिफ़ा पा जाए”। *[बुख़ारी: 5746]*
मुस्लिम के अल्फ़ाज़ हैं कि आप (स) अपनी शहादत वाली उंगली ज़मीन पर
रखते, फिर उठाते और ऊपर ज़िक्र की हुई दुआ पढ़ते। *[मुस्लिम: 5719]*
खाना खाने से पहले “बिस्मिल्लाह” पढ़ना चाहिए, जैसा कि
सय्यदना उमर बिन अबी सलमा (र) बयान करते हैं कि मैं जब बच्चा था और रसूलुल्लाह (स)
की परवरिश में था और (खाना खाते वक़्त) मेरा हाथ बर्तन में चरों तरफ़ घूमा करता था,
तो रसूलुल्लाह (स) ने फ़रमाया:
}}يَا غُلَامُ، سَمِّ اللَّهَ وَكُلْ بِيَمِينِكَ
وَكُلْ مِمَّا يَلِيكَ{{
“ऐ लड़के! बिस्मिल्लाह पढ़ कर अपने दाएँ हाथ से खाओ और अपने सामने
से खाओ”। *[बुख़ारी: 5376, मुस्लिम: 5269]*
अगर खाने से पहले “बिस्मिल्लाह” पढ़ना भूल जाए तो याद
आने पर नीचे दी गयी दुआ पढ़िए, सय्यदा आयशा रज़ियल्लाहू अन्हा बयान करती हैं कि
रसूलुल्लाह (स) ने फ़रमाया: “जब तुममें से कोई खाना खाये तो बिस्मिल्लाह कहे, अगर शुरू में “बिस्मिल्लाह”
भूल
जाये तो यह दुआ पढ़े:
}}بِسْمِ اللَّهِ فِي أَوَّلِهِ وَآخِرِهِ{{
“अल्लाह तआला के नाम के साथ (खाता हूँ) इसके शुरू और इसके आख़िर
में”। *[तिरमिज़ी: 1858]*
जानवर ज़िबह करते वक़्त की दुआ, सय्यदना अनस (र) बयान करते हैं,
रसूलुल्लाह (स) ने दो चितकबरे, सींगों वाले मेंढ़ों की क़ुरबानी दी और उन्हें अपने
हाथ से ज़िबह किया और आपने यह दुआ पढ़ी: *{{بِاسْمِ اللَّهِ وَاللَّهُ أَكْبَرُ}}* “अल्लाह के नाम के साथ और अल्लाह सबसे बड़ा है”। *[बुख़ारी (5565), मुस्लिम
(5087)]*
शिकार के लिये शिकारी जानवर या तीर छोड़ते वक़्त “बिस्मिल्लाह”
कहना,
जैसा कि सय्यदना अदी बिन हातिम (र) बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह (स) ने फ़रमाया: “जब तुम (शिकार के
लिए) अपना कुत्ता छोड़ो तो बिस्मिल्लाह कहो और अगर तुम अपना तीर फेंकों तो
बिस्मिल्लाह कहो”। *[मुस्लिम: 4981, बुख़ारी: 5487]*
जिस ज़बीहा के बारे में इल्म न हो कि इस पर बिस्मिल्लाह पढ़ी गई है या
नहीं तो ख़ुद बिस्मिल्लाह पढ़ लीजिए जैसा कि सय्यदा आयशा सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहू अन्हा
बयान करती हैं कि एक बार कुछ लोगों ने रसूलुल्लाह (स) से पूछा कि कुछ लोग हमारे
पास गोश्त लाते हैं, हमें नहीं मालूम कि उन्होंने इस पर बिस्मिल्लाह पढ़ी है या
नहीं, रसूलुल्लाह (स) ने फ़रमाया: “तुम इस पर बिस्मिल्लाह पढ़ लो और खा लो”। आयशा सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहू
अन्हा बयान करती हैं कि यह लोग अभी इस्लाम में नये नये दाख़िल हुए थे। *[बुख़ारी:
5507]*
घर में दाख़िल होते वक़्त “बिस्मिल्लाह” पढ़ने की फ़ज़ीलत बयान
करते हुए सय्यदना जाबिर बिन अब्दुल्लाह (र) बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह (स)
फ़रमाते हैं: “जब कोई शख़्स अपने घर में दाख़िल होते वक़्त और खाना खाते वक़्त
अल्लाह का ज़िक्र करे तो शैतान (अपने साथियों से) कहता है, अब तुम्हारे लिए न
ठिकाना है न खाना और अगर वो शख़्स दाख़िल होते वक़्त अल्लाह का नाम न ले तो शैतान
(अपने साथियों से) कहता है, अब तुम्हें रहने के लिए ठिकाना मिल गया”। *[मुस्लिम: 5262]*
सोने से पहले “बिस्मिल्लाह” पढ़ कर अन्जाम दिए जाने वाले कुछ आमाल
बयान करते हुए सय्यदना जाबिर बिन अब्दुल्लाह (र) बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह (स)
ने फ़रमाया: “जब तुम सोने लगो तो दरवाज़ों को अल्लाह का नाम ले कर बन्द कर
दो, क्यूंकि शैतान बन्द दरवाज़े को नहीं खोलता, अल्लाह का नाम ले कर मिश्कीज़ों
(बोतलों) के मुंह बाँध दो. अल्लाह का नाम ले कर अपने बर्तनों को ढ़क दो, चाहे किसी
चीज़ को चौड़ाई में रख ही ढ़क सको और (अल्लाह का नाम लेकर) अपने दिये बुझा दो”। *[बुख़ारी: 5623]*
लशकर को रवाना करते वक़्त रसूलुल्लाह (स) की नसीहत, सय्यदना बुरैदा
(र) बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह (स) जब किसी लशकर को नसीहत फ़रमाते तो कहते: {{اغْزُوا بِاسْمِ اللَّهِ فِي سَبِيلِ
اللَّهِ}} “अल्लाह का नाम लेकर अल्लाह के रास्ते
में जिहाद करो”। *[मुस्लिम: 4522]*
बिस्तर पर लेटते वक़्त, सय्यदना अबू हुरैरा (र) बयान करते हैं कि
रसूलुल्लाह (स) ने फ़रमाया: “जब तुममें से कोई शख़्स अपने बिस्तर पर आये तो वो अपने तहबन्द
के एक कोने (या किसी कपड़े) से पाने बिस्तर को अल्लाह का नाम लेकर (यानी “बिस्मिल्लाह”
कह
कर) तीन बार झाड़े”। *[मुस्लिम: 6892, बुख़ारी: 7393]*
सवारी पर सवार होते वक़्त “बिस्मिल्लाह” पढ़ना, जैसा कि अली
बिन रबीअ कहते हैं, मेरे सामने अली (र) के लिए सवारी लायी गई, जब उन्होंने रकाब
में पैर रखा तो “बिस्मिल्लाह” कहा, फिर जब इसकी पीठ पर सीधे बैठ गए तो
कहा “अल्हम्दुलिल्लाह”
फिर
कहा:
*سُبْحٰنَ الَّذِیْ سَخَّرَ لَنَا هٰذَا وَ مَا كُنَّا
لَهٗ مُقْرِنِیْنَۙ۱۳وَ اِنَّاۤ اِلٰى رَبِّنَا لَمُنْقَلِبُوْنَ۱۴*
“अल्लाह तमाम बुराइयों से पाक है, जिसने इस सवारी को हमारे लिए
मुसख़्ख़र कर दिया, हालांकि हम इसको क़ाबू में न ला सकते थे और बेशक हम अपने रब ही की
तरफ़ लौट कर जाने वाले हैं” फिर सय्यदना अली (र) ने कहा, मैंने रसूलुल्लाह (स) को देखा वो
भी ऐसा ही करते थे जैसा मैंने किया। *[अबू दावूद: 2602, तिरमिज़ी: 3446]*
जारी है...................................
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Surah Fatiha Part 7 (सुरह फ़ातिहा भाग 7)
*أَعـــــــــــــــــــــــوذ بالله من الشيطان الرجيم*●
🍂🍃ﺑِﺴْـــــــــــــﻢِﷲِالرَّحْمٰنِﺍلرَّﺣِﻴﻢ🍂🍃
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*तफ़सीर दावतुल क़ुरआन*
लेख़क: अबू नोमान सैफ़ुल्लाह ख़ालिद
तर्जुमा: मोहम्मद शिराज़ (कैफ़ी)
*सूरह फ़ातिहा*
*भाग 7*
“अल्लाह
के नाम से जो बेहद रहम वाला, निहायत मेहरबान है”।
सय्यदना
अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ियल्लाहू अन्हुमा बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु
अलैहि वसल्लम सूरतों का फ़र्क़ न पहचानते थे, यहाँ तक कि “بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ” नाज़िल की जाती। *[अबू दावूद: 788]*
सय्यदना
अनस (र) बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह (स) ने फ़रमाया: “मुझ पर अभी एक सूरत
नाज़िल हुई है”। फिर आपने इस तरह तिलावत फ़रमाई:
*بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیْمِاِنَّاۤ
اَعْطَیْنٰكَ الْكَوْثَرَؕ۱فَصَلِّ لِرَبِّكَ وَ انْحَرْؕ۲اِنَّ شَانِئَكَ هُوَ الْاَبْتَرُ۠۳*
“अल्लाह के नाम से जो बेहद रहम वाला, निहायत मेहरबान है। बेशक हमने तुझे कौसर अता की,
तो तू अपने रब के लिए नमाज़ पढ़ और क़ुरबानी कर, यक़ीनन तेरा दुशमन ही बेऔलाद होगा”। *[मुस्लिम: 894]*
नुऐम रहमतुल्लाह अलैह कहते हैं, मैंने अबू हुरैरा (र) के पीछे नमाज़
पढ़ी, उन्होंने सुरह फ़ातिहा से पहले “بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ” की तिलावत की...................फिर फ़रमाया, क़सम उस ज़ात की,
जिसके हाथ में मेरी जान है! मैं नमाज़ पढ़ने के लिहाज़ से तुम सबसे ज़्यादा रसूलुल्लाह
(स) की तरह हूँ। *[नसाई: 906]*
इस मसले में कि “बिस्मिल्लाह” को जहरन (ऊँची आवाज़
से) पढ़ा जाए या सिर्रन (धीमी आवाज़ से), अल्लामा इब्ने क़य्यिम रहमतुल्लाह की बात एतिदाल
वाली है कि नबी करीम (स) इसे कभी जहरन पढ़ते थे और कभी सिर्रन, हाँ, आपका सिर्रन
पढ़ना ज़्यादा साबित है।
सय्यदना अनस बिन मालिक (र) से नबी (स) की क़िरआत के बारे में पूछा
गया तो उन्होंने फ़रमाया कि आप (स) अल्फाज़ को ख़ींच कर क़िरआत फ़रमाया करते थे, फिर
उन्होंने “بِسْمِ
اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ” की इस तरह क़िरआत करके दिखाई कि “بِسْمِ اللّٰهِ” को ख़ींच कर, फिर “الرَّحْمٰنِ” को ख़ींच कर और फिर “الرَّحِيْمِ” को ख़ींच कर पढ़ा। *[बुख़ारी: 5046]*
क़ुरआन करीम की कई आयतें और सहीह हदीसों से मालूम होता है कि एक
मुसलमान की ज़िन्दगी में “बिस्मिल्लाह” की बड़ी अहमियत है और कोई भी काम करने से
पहले *“बिस्मिल्लाह”* कहना
ख़ैर व बरकत का ज़रिया, अल्लाह की मदद व हिमायत का ज़रिया और ताईद व हिफाज़त का सबब है। “बिस्मिल्लाह”
कहने
से शैतान ज़लील हो जाता है, जैसा कि अबुल मलीह एक सहाबी से बयान करते हैं, वो कहते
हैं कि मैं गधे पर नबी करीम (स) के पीछे सवार था, गधा ज़रा फिसला तो मैंने कहा,
शैतान का बुरा हो, तो नबी (स) ने मुझसे फ़रमाया: “यह न कहो कि शैतान का
बुरा हो, क्यूंकि इससे शैतान फूल जाता है और कहता है कि मैंने अपनी ताक़त के साथ
इसे गिराया है, सो अगर तुम “बिस्मिल्लाह” कहो तो इससे शैतान अपने आपको निहायत
छोटा और हक़ीर समझता है, यहाँ तक कि मक्खी से भी ज़्यादा छोटा और ज़्यादा हक़ीर”। *[मुसनद अहमद: 20616, सुनन
कुबरा लिननसाई: 10388]*
ख़त व किताबत की शुरूआत “बिस्मिल्लाह” से करना चाहिए, जैसा
कि सय्यदना अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ियल्लाहू अन्हुमा से रिवायत है कि सय्यदना अबू
सुफ़ियान (र) ने बयान किया कि रसूलुल्लाह (स) ने हरक़ुल के नाम एक ख़त लिखा था, जब
बादशाह ने उस ख़त को मंगवाया तो उसके शुरू में यह लिखा था: {{بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ}} *[बुख़ारी: 7, मुस्लिम: 4607]*
सय्यदना सुलैमान अलैहिस्सलाम ने जो ख़त मलका सबा को लिखा था
उसकी शुरूआत इस तरह होती है:
*اِنَّهٗ مِنْ سُلَیْمٰنَ وَ اِنَّهٗ بِسْمِ اللّٰهِ
الرَّحْمٰنِ الرَّحِیْمِۙ۳۰*
“बेशक वो सुलैमान की तरफ़ से है और बेशक वो अल्लाह के नाम से है
जो बेहद रहम वाला, निहायत मेहरबान है”। *[अन-नम्ल: 30]*
सय्यदना मिसवर बिन मख़ज़मह और मरवान रज़ियल्लाहू अन्हुमा बयान करते हैं
कि रसूलुल्लाह (स) ने जब हुदैबिया के मक़ाम पर सुलह नामा लिखवाने का इरादा किया तो
आपने कातिब को बुलवाया और उससे फ़रमाया: {{اكْتُبْ بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَنِ الرَّحِيمِ}} “بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ लिखो”। *[बुख़ारी: 2731,2732, मुस्लिम: 4632]*
वुज़ू से पहले “बिस्मिल्लाह” पढ़ना ज़रूरी है, जैसा कि सय्यदना अनस (र)
बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह (स) ने फ़रमाया: {{تَوَضَّئُوا بِسْمِ اللَّهِ}} “अल्लाह के नाम के साथ वुज़ू करो”। *[नसाई: 78]*
बीवी से हमबिस्तरी करने से पहले “बिस्मिल्लाह”
पढ़ना,
जैसा कि सय्यदना अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ियल्लाहू अन्हुमा बयान करते हैं कि
रसूलुल्लाह (स) ने फ़रमाया: “जब तुममें से कोई अपनी बीवी के पास आये तो यह कहे: *{{بِاسْمِ اللَّهِ اللَّهُمَّ جَنِّبْنِي
الشَّيْطَانَ وَجَنِّبْ الشَّيْطَانَ مَا رَزَقْتَنَا}}* “अल्लाह के नाम के साथ, ऐ अल्लाह! हमें शैतान से महफूज़ रख और जो
(औलाद) तू हमें दे उसे भी शैतान से महफूज़ रख” तो अब अगर मुक़द्दर
में औलाद है तो शैतान इसको कभी नुक़सान नहीं पहुँचाएगा”। *[बुख़ारी: 5165, मुस्लिम:
3533]*
जारी है...................................
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Surah Fatiha Part 6 (सुरह फ़ातिहा भाग 6)
*أَعـــــــــــــــــــــــوذ بالله من الشيطان الرجيم*●
🍂🍃ﺑِﺴْـــــــــــــﻢِﷲِالرَّحْمٰنِﺍلرَّﺣِﻴﻢ🍂🍃
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*तफ़सीर दावतुल क़ुरआन*
लेख़क: अबू नोमान सैफ़ुल्लाह ख़ालिद
तर्जुमा: मोहम्मद शिराज़ (कैफ़ी)
*सूरह फ़ातिहा*
*भाग 6*
नमाज़ में शैतानी वस्वसों से अल्लाह की पनाह चाहना, जैसा कि सय्यदना
उस्मान बिन अबुल आस रज़ियल्लाहू अन्हु बयान करते हैं कि मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु
अलैहि वसल्लम से कहा, ऐ अल्लाह के रसूल! मेरे और मेरी नमाज़ और क़िरआत के बीच शैतान
आ जाता है, वो मुझ पर क़िरआत को गड़मड़ करता है, तो आपने फ़रमाया: “ये शैतान है, जिसे
ख़िन्ज़ब कहा जाता है, जब तुम इसके आने को महसूस करो तो इस (के शर) से अल्लाह तआला
की पनाह तलब करो (यानीاَعُوْذُ
بِاللّٰهِ مِنَ الشَّيْطٰنِ الرَّجِيْمِ पढ़ो) और तीन बार अपनी बाईं तरफ़ थुतकारो”। उस्मान रज़ियल्लाहू अन्हु कहते
हैं कि मैंने ऐसा ही किया तो अल्लाह ने इस शैतान को मुझसे दूर कर दिया। *[मुस्लिम:
5738, मुसनद अहमद: 17918]*
बच्चों के लिए अल्लाह की पनाह चाहना, जैसा कि सय्यदना अब्दुल्लाह
बिन अब्बास रज़ियल्लाहू अन्हुमा बयान करते हैं कि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हसन व
हुसैन रज़ियल्लाहू अन्हुमा के लिए इन शब्दों के ज़रिये पनाह तलब किया करते थे: {{أَعُوذُ بِكَلِمَاتِ اللَّهِ
التَّامَّةِ مِنْ كُلِّ شَيْطَانٍ وَهَامَّةٍ وَمِنْ كُلِّ عَيْنٍ لَامَّةٍ}}“मैं अल्लाह के तमाम कलिमात एक साथ (तुम
दोनों के लिए) हर शैतान से और उस मख़लूक़ से
जो बुराइ का इरादा करे और हर नज़र लगाने वाली आँख से पनाह मांगता हूँ”। *[बुख़ारी: 3371]*
बीमारी के वक़्त अल्लाह की पनाह
माँगना, जैसा कि सय्यदना उस्मान बिन अबुल आस रज़ियल्लाहू अन्हु कहते हैं कि मैंने
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से एक बीमारी की शिकायत की जो इस्लाम क़ुबूल
करने के बाद मैंने पहली बार महसूस की थी। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: “अपने हाथ को अपने
जिस्म पर तकलीफ़ वाली जगह रख कर तीन बार ‘बिस्मिल्लाह’ कहो और सात बार ये दुआ पढ़ो:
{{}} ‘मैं अल्लाह तआला की और उसकी क़ुदरत की पनाह पकड़ता हूँ उस चीज़ के शर से जो मैं
पाता हूँ और जिससे डरता हूँ’”। *[मुस्लिम: 5737]*
बुरा ख़्वाब देखने पर अल्लाह की पनाह तलब करना, जैसा कि सय्यदना
अबू क़तादा रज़ियल्लाहू अन्हु बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम
ने फ़रमाया: “अच्छा ख़्वाब अल्लाह तआला की तरफ़ से होता है और बुरा ख़्वाब
शैतान की तरफ़ से होता है, तो अगर तुममें से कोई शख़्स बुरा ख़्वाब देख कर उससे डर
जाए तो वो अपनी बाईं तरफ़ थुतकारे और अल्लाह तआला से उसके शर से पनाह मांगे तो वो
उसे नुक़सान न पहुँचायेग”। *[बुख़ारी: 3292]*
सुबह व शाम और बिस्तर पर लेटते वक़्त अल्लाह की पनाह में आना जैसा कि
सय्यदना अबू हुरैरा रज़ियल्लाहू अन्हु बयान करते हैं कि सय्यदना अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहू
अन्हु ने कहा कि ऐ अल्लाह के रसूल! मुझे ऐसी दुआ सिखा दीजिये जो मैं सुबह व शाम
पढ़ा करूँ। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: “ये पढ़ा करो:
}}اللَّهُمَّ عَالِمَ الْغَيْبِ وَالشَّهَادَةِ
فَاطِرَ السَّمَوَاتِ وَالْأَرْضِ رَبَّ كُلِّ شَيْءٍ وَمَلِيكَهُ أَشْهَدُ أَنْ
لَا إِلَهَ إِلَّا أَنْتَ، أَعُوذُ بِكَ مِنْ شَرِّ نَفْسِي وَمِنْ شَرِّ
الشَّيْطَانِ وَشِرْكِهِ{{
‘ऐ अल्लाह! ज़ाहिर व छुपे हुए को जानने वाले! आसमान व ज़मीन के
पैदा करने वाले! हर चीज़ को पालने वाले और उसके मालिक! मैं गवाही देता हूँ कि तेरे
सिवा कोई माबूद नहीं, मैं अपने नफ़्स के शर से और मरदूद शैतान के शर और शिर्क से
तेरी पनाह चाहता हूँ’” फिर आपने फ़रमाया: “इस दुआ को सुबह व शाम और रात को बिस्तर
पर जाते वक़्त पढ़ा करो”। *[तिरमिज़ी: 3392]*
अक़ाइद में शैतानी वस्वसों से अल्लाह की पनाह
तलब करना, जैसा कि सय्यदना अबू हुरैरा रज़ियल्लाहू अन्हु बयान करते हैं कि
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: “शैतान
तुम्हारे किसी शख़्स के पास आता है तो वो कहता है: इसको किसने पैदा किया? इसको किसने पैदा किया?
यहाँ तक की कहता है: तेरे रब को किसने पैदा किया है? तो जब तुममें से कोई इस हद तक
पहुँच जाए तो वो अल्लाह की पनाह तलब (यानी اَعُوْذُ بِاللّٰهِ مِنَ الشَّيْطٰنِ الرَّجِيْمِ पढ़ ले) करे और
इस (शैतानी ख़याल) को छोड़ दे”। *[बुख़ारी: 3276, मुस्लिम: 345]*
मौत
के वक़्त शैतानी हमले से अल्लाह की पनाह चाहना, जैसा कि सय्यदना अबुल यसर रज़ियल्लाहू
अन्हु रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से बयान करते हैं कि आप सल्लल्लाहु
अलैहि वसल्लम यह दुआ किया करते थे:
}}اللَّهُمَّ إِنِّي أَعُوذُ بِكَ مِنَ
التَّرَدِّي وَالْهَدْمِ وَالْغَرَقِ وَالْحَرِيقِ، وَأَعُوذُ بِكَ أَنْ
يَتَخَبَّطَنِي الشَّيْطَانُ عِنْدَ الْمَوْتِ، وَأَعُوذُ بِكَ أَنْ أَمُوتَ فِي
سَبِيلِكَ مُدْبِرًا، وَأَعُوذُ بِكَ أَنْ أَمُوتَ لَدِيغًا {{
“ऐ अल्लाह! में तेरी पनाह माँगता हूँ
किसी चीज़ के नीचे आने से, ऊँची जगह से गिरने से, डूबने और जलने से और तेरी पनाह
माँगता हूँ कि मौत के वक़्त शैतान मुझे बहका दे और मैं तेरी पनाह माँगता हूँ इस बात
से कि तेरी राह में जिहाद से भागता हुआ मरूं और इस बात से भी तेरी पनाह माँगता हूँ
कि किसी ज़हरीले जानवर के डसने से मुझे मौत आए”। *[नसाई: 5533]*
सुबह व शाम के वक़्त अल्लाह की पनाह में आना, जैसा कि सय्यदना अबू
हुरैरा (र) बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह (स) ने फ़रमाया: “अगर तुम शाम को यह
कलिमात पढ़ लेते:
}}أَعُوذُ بِكَلِمَاتِ اللَّهِ التَّامَّاتِ مِنْ
شَرِّ مَا خَلَقَ{{
“मैं अल्लाह के मुकम्मल कलिमात के साथ तमाम चीज़ों के शर से पनाह
चाहता हूँ जो उसने पैदा की हैं” तो तुम्हें कोई नुक़सान न पहुँचता”। *[मुस्लिम: 6880]*
जारी है...................................
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https://authenticmessages.blogspot.com/2020/12/surah-fatiha-part-6-6.html
Tafseer Dawat ul Quran (Hindi Translation) Part 8
أَعـــــــــــــــــــــــوذ بالله من الشيطان الرجيم● 🍂🍃ﺑِﺴْـــــــــــــﻢِﷲِالرَّحْمٰنِﺍلرَّﺣِﻴﻢ🍂🍃 📒 तफ़सीर दावतुल क़ुरआन 📒 ✒️ लेख़क: अ...
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