أَعـــــــــــــــــــــــوذ بالله من الشيطان الرجيم●
🍂🍃ﺑِﺴْـــــــــــــﻢِﷲِالرَّحْمٰنِﺍلرَّﺣِﻴﻢ🍂🍃
📒 तफ़सीर दावतुल क़ुरआन 📒
✒️ लेख़क: अबू नोमान सैफ़ुल्लाह ख़ालिद
🖋️ तर्जुमा: मोहम्मद शिराज़ (कैफ़ी)
🌺🍀🍁 सूरह फ़ातिहा 🌺🍀🍁
➡️ भाग 4
इमाम के पीछे भी सूरह
फ़ातिहा ज़रूरी है, जैसा कि सय्यदना उबादा बिन सामित रज़ियल्लाहू अन्हु रिवायत करते
हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि ने फ़ज्र की नमाज़ पढ़ाई और आपके लिए क़ुरआन की
तिलावत मुश्किल हो गई। जब नामाज़ से फ़ारिग़ हुए तो फ़रमाया: “शायद तुम अपने इमाम के
पीछे क़िरात किया करते हो”? हमने कहा, हाँ, ऐ अल्लाह के रसूल! आपने फ़रमाया: “सिवाय
फ़ातिहा के और कुछ न पढ़ा करो, क्यूंकि उस शख़्स की नमाज़ नहीं होती जो सूरह फ़ातिहा न
पढ़ें। [तिरमिज़ी: 311, अबू दावूद: 823]
सय्यदना उबादा बिन
सामित रज़ियल्लाहू अन्हु बयान करते हैं कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया:
“मैं सोचता था कि क़ुरआन का पढ़ना मुझ पर दुशवार क्यों होता है (फिर मैंने जान लिया
कि तुम्हारे पढ़ने की वजह से दुशवार हुआ) तो जब में जहरन पढ़ूं (जहरी नमाज़ में) तो क़ुरआन
से सूरह फ़ातिहा के सिवा कुछ भी न पढो”। [अबू दावूद: 824]
सय्यदना अबू हुरैरा
रज़ियाल्लाहू अन्हु बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने
फ़रमाया: “जिस शख़्स ने नमाज़ पढ़ी और इसमें सुरह फ़ातिहा न पढ़ी तो वो (नमाज़) अधूरी है,
अधूरी है, नामुकम्मल है”। अबू हुरैरा रज़ियल्लाहू अन्हु से पूछा गया कि हम इमाम के
पीछे होते हैं (तो क्या फिर भी पढ़ें)? तो अबू हुरैरा रज़ियल्लाहू अन्हु ने कहा,
(हाँ)! तब तू इसको दिल में पढ़। [मुस्लिम: 878]
सय्यदना अनस रज़ियल्लाहू
अन्हु बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने सहाबा को नामज़
पढ़ाई, फ़ारिग़ होकर उनकी तरफ़ तवज्जो देकर पूछा: “क्या तुम अपनी नामाज़ में इमाम की
क़िरात के दौरान में कुछ पढ़ते हो”? सब ख़ामोश रहे, तीन बार आपने उनसे यही पूछा, तो
उन्होंने जवाब दिया, जी हाँ! हम ऐसा करते हैं, आपने फ़रमाया: “ऐसा न किया करो,
बल्कि तुम सिर्फ़ सुरह फ़ातिहा दिल में पढ़ लिया करो”। [इब्ने माजा: 1844, सुनन
कुबरा लिलबैहक़ी: 2/166]
जारी है...................................
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