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Monday, August 26, 2024

Tafseer Dawat ul Quran (Hindi Translation) Part 1

 أَعـــــــــــــــــــــــوذ بالله من الشيطان الرجيم●


🍂🍃ﺑِﺴْـــــــــــــﻢِﷲِالرَّحْمٰنِﺍلرَّﺣِﻴﻢ🍂🍃


📒 तफ़सीर दावतुल क़ुरआन 📒


✒️ लेख़क: अबू नोमान सैफ़ुल्लाह ख़ालिद 


🖋️ तर्जुमा: मोहम्मद शिराज़ (कैफ़ी)


🌺🍀🍁 सूरह फ़ातिहा 🌺🍀🍁


➡️ भाग 1


सुरह फ़ातिहा के शाने नुज़ूल के बारे में सय्यदना अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ियल्लाहू अन्हुमा बयान करते हैं, एक दिन जिब्रील अलैहिस्सलाम रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास बैठे हुए थे, उन्होंने अपने ऊपर की तरफ़ से बड़े ज़ोर से दरवाज़ा खुलने की आवाज़ सुनी, उन्होंने अपना सर उठाया और फ़रमाया: “आज आसमान का वो दरवाज़ा खुला है, जो इससे पहले कभी नही खुला था और इससे एक फ़रिश्ता उतरा है”। फिर फ़रमाया: “इस दरवाज़े से ये फ़रिश्ता ज़मीन पर उतरा है, ये आज के दिन से पहले कभी नहीं उतरा”। इस फ़रिश्ते ने (रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को) सलाम किया और कहा: “आपको इन दो नूरों की ख़ुशख़बरी हो जो आपको इनायत हुए हैं ये आप से पहले किसी नबी को अता नहीं हुए, इनमें से एक सुरह फ़ातिहा है और दूसरा नूर सुरह बक़रह की आख़िरी आयतें। आप जब भी इन दोनों में से कोई हर्फ़ तिलावत करेंगें तो आपको मांगी हुई चीज़ ज़रूर अता कर दी जाएगी”। [मुस्लिम: 1877]

सुरह फ़ातिहा क़ुरआन मजीद की सबसे ज़्यादा अज़मत वाली सूरत है, जैसा कि सय्यदना अबू सईद बिन मुअल्ला रज़ियल्लाहू अन्हु कहते हैं कि मैं मस्जिद में नमाज़ पढ़ रहा थे कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुझे बुलाया, मैं उसी वक़्त हाज़िर न हुआ (बल्कि नमाज़ पढ़ कर गया) और कहा कि या रसूलुल्लाह! मैं नमाज़ पढ़ रहा था (इस वजह से देर हुई) तो आपने फ़रमाया: “क्या अल्लाह ने ये नहीं फ़रमाया: { اسْتَجِيْبُوْا لِلّٰهِ وَلِلرَّسُوْلِ اِذَا دَعَاكُمْ } तुम अल्ल्लाह की और रसूल की दावत क़ुबूल करो, जब वो तुम्हें बुलाएं”। [अनफ़ाल: 24] फिर मुझसे फ़रमाया: तेरे मस्जिद से बाहर जाने से पहले तुझे क़ुरआन की एक ऐसी सूरत बताऊंगा जो (अज्र व सवाब में) सारी सूरतों से बढ़ कर है”। फिर आपने मेरा हाथ पकड़ लिया, जब आपने बाहर आने का इरादा किया तो मैंने कहा कि या रसूलुल्लाह! क्या आपने ये नहीं फ़रमाया था कि मैं तुमको एक सूरत बतलाऊँगा जो क़ुरआन की सब सूरतों से बढ़ कर है? आपने फ़रमाया: “वो सूरत { اَلْحَمْدُ لِلّٰهِ رَبِّ الْعٰلَمِيْنَ} है। यही सबअ मसानी (यानी सात आयतें हैं जो बार बार दोहराई जाती हैं) और क़ुरआन ए अज़ीम है जो मुझे दिया गया है”। [बुख़ारी: 4474]                                


जारी है...................................


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